by : अजुनी
B.A.LLb (Judiciary Aspirant @ZJ)
न्यायिक पुनर्विलोकन का अर्थ है की सर्वोच्च न्यायलय किसी भी कानून की सवैधानिकता की जांच कर सकता है और यदि वह सविधान के प्रावधान के विपरीत है तो न्यायलय उसे गैर सवैंधानिक घोषित कर सकता है। सविधान मे कही भी न्यायिक पुनर्विलोकन शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है लेकिन सविधान ऐसी दो विधियों का उल्लेख करता है जहाँ सर्वोच्च न्यायलय इस सकती का प्रयोग कर सकता है |
मूल अधिकारों की रक्षा करना – मूल अधिकारों के विपरीत होने पर सर्वोच्च न्यायलय किसी भी कानून को निरस्त कर सकता है। केंद्र व राज्य या राज्यों के परस्पर विवाद के निपटारे के लिए सर्वोच्च न्यायलय अपनी न्यायिक पुनर्विलोकन की सकती का प्रयोग कर सकता है।
इसके अतिरिक्त सविंधान यदि मौन है या किसी शब्द या अनुछेद के विषय में अस्पस्ट है तो वह सविंधान के अर्थो को स्पस्टीकरण हेतु इस सकती का प्रयोग कर सकता है।
सविंधान के अनुछेद 13 के तहत सर्वोच्च न्यायलय किसी कानून को गैर सवैंधानिक घोषित कर सकती है व उसे लागू होने से रोक सकती है।
न्यायिक पुनर्विलोकन की सकती राज्यों की विधायिका द्वारा बनाये कानूनों पर भी लागू होती है। न्यायिक पुनर्विलोकन की सकती के द्वारा न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और सविंधान की व्याख्या कर सकती है। इसके द्वारा न्यायपालिका प्रभावी ढंग से सविंधान और नागरिको के मूल अधिकारों की रक्षा करती है।
मूल अधिकारों के क्षेत्र मे न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति का विस्तार – उदाहरण के लिए बंधुआ मजदुर ,बाल श्रमिक अपने शोषण के अधिकार के उलंघन की की याचिका स्वयं न्यायपालिका में दायर करने में सक्षम नहीं थे। परिणाम सवरूप न्यायलय द्वारा पहले इन अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं हो पा रहा था।
लेकिन न्यायिक सक्रियता व जनहित याचिकाओं के माध्यम से न्यायलय में ऐसे केस दूसरे लोगो स्वंसेवी संस्थाओ ने उठाये या सवयं न्यायलय ने अखबार में छपी खबरों के आधार पर सवयं संज्ञान लेते हुए मुद्दों पर विचार किया इस परवर्ती से गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगो के अधिकारों को अर्थपूर्ण बना दिया।
कार्यपालिका के कृत्यों के विरुद्ध जाँच करना – न्यायपालिका ने कार्यपालिका की राजनैतिक व्यवहार बर्ताव के प्रति सविंधान के उल्लंघन की प्रवर्ति पर न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति द्वारा अंकुश लगाया है। अनेक मामलो में सर्वोच्च न्यायलय ने न्याय की स्थापना के लिए कार्यपालिका की संस्थाओ को निर्देश दिए है,जैसे हवाला मामले ,पेट्रोल पम्पों के अवैध आवंटन जैसे अनेक मामलो मे न्यायलय ने सी बी आई को निर्देश दिया की वह राजनेताओं और नौकर साहो की विरुद्ध जाँच करे।
सविधान की मूल ढांचे की सिद्धांत का प्रतिपादन सविधान लागु होने की तुरंत सम्पति की अधिकार पर रोक लगाने की संसद की शक्ति पर संसद और न्यायपालिका में विवाद खड़ा हो गया संसद सम्पति रखने की अधिकार पर कुछ प्रतिबंध लगाना चाहती थी जिससे भूमि सुधारो को लागू किया जा सके।
लेकिन न्यायलय ने न्यायिकं पुनर्विलोकन की शक्ति की तहत यह निर्णय दिया की संसद मौलिक अधिकारों को सिमित नहीं कर सकती संसद ने तब सविधान संसोधन पर ऐसा करने का प्रयास किया लेकिन न्यायलय ने १९६७ में गोलकनाथ विवाद में यह निर्णय दिया की सविंधान की संशोधन द्वारा मौलिक अधिकारों को सिमित नहीं किया जा सकता।
फलतया संसद और न्यायपालिका की बीच यह मुद्दा केंद्र में आया की संसद द्वारा सविंधान की शक्ति का दायरा क्या है। इस मुद्दे का निपटारा सन 1973 में केशवनंदन भारती की विवाद में हुआ की प्रस्तावना सविंधान का मूल ढांचा है और संसद इस मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती सविंधान संसोधन द्वारा भी मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता तथा सविंधान का मूल ढांचा क्या है यह निर्णय का अधिकार अपने पास ही रखा इस प्रकार सविंधान की मूल ढांचे का सिंद्धांत का प्रतिपादन कर नयायलय ने अपनी पुनर्विलोकन की शक्ति को वयापक कर दिया।
न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति का महत्व –
न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति के महत्व को इस प्रकार स्पस्ट किया गया है–
लिखित सविंधान की वयाख्या की लिए आवयशक – भारत का सविंधान लिखित है एवं कही कही शब्दावली अस्पस्ट और उलझी हुई हो शक्ति है उसकी वयाख्या की लिए न्यायलय की पास उसकी वयाख्या की शक्ति आवयशक है।
संघात्मक सविंधान – भारत का सविंधान एक संघीय सविंधान है जिसमे केंद्र और राज्यों को सविंधान द्वारा विभाजित किया गया है लेकिन यदि केंद्र और राज्य अपने क्षेत्रों विषयो की सीमाओं का उल्लंघन करे तो कार्य संचालन मुश्किल हो जायेगा। इसलिए केंद्र और राज्यों एवं राज्यों की बीच समय समय पर उठने वाले विवादों का समाधान न्यायपालिका ही कर शक्ति है इसलिए ऐसे विवादों के समाधान की दृष्टि से न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति अत्यंत उपयोगी है।
सविंधान एवं मूल अधिकारों की रक्षा – न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति की द्वारा सर्वोच्च न्यायलय ने सविंधान की रक्षा के महत्वपूर्ण कार्य किया है इसी कार्य की तहत उसने सविंधान की मूल ढांचे के सिंद्धांत के प्रतिपादन किया है।
न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति के अंतर्गत भी उसने नागरिको के मूल अधिकारों को अर्थपूर्ण बनाया है।