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मृत्युदंड का भारत में औचित्य

  • July 9, 2021
  • Zia Judicials
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                              मृत्युदंड का भारत में औचित्य  

                                                                                                                                             (लेखिका मीनू देवी)

मृत्युदंड – जब किसी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के फलस्वरूप किसी अपराध के परिणाम में  प्राणांत का दण्ड दिया जाता है , मृत्युदंड कहलाता है।

आपराधिक विधि–शास्त्र में मृत्युदंड – मृत्युदंड सबसे कठोरतम दंडादेश है, भारतीय दण्ड सहिंता में निम्नलिखित दंडों में से एक मृत्युदंड भी है जो कि विरले से विरले अपराध में दिया जाता है , मृत्युदंड अपराधियों कि हृदय में मृत्यु का भय उत्पन्न कर देता है , दंडादेश के भय के कारण ही समाज में कानून और व्यवस्था एवं  शांति और सुरक्षा का वातावरण रहता है, मृत्युदंड प्रणाली प्राचीन काल से चला आ रहा है।  पहले माना जाता था के चोरी करने पर अपराधी के हाथ काट दिए जाए तांकि कोई पुन: चोरी ना कर सके, आँख के बदले आँख  एवं जीवन के बदले जीवन।  परन्तु वर्तमान समय में अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों के विरोध और सुधारवादियों  के सिद्धांतों के परिणाम स्वरूप यह चर्चा का महत्वपूर्ण विषय बन गया है कि मृत्युदंड को देना उचित है या अनुचित। मृत्युदंड वर्तमान समय में अन्य अपराधों जैसे हत्या, डकैती ,आतंकवाद, डकैती सहित राष्ट्रद्रोह और सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र इत्यादि अपराधों में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।

भारतीय सहित पूरे विश्व में मृत्युदंड चर्चा का विषय बन गया है, पक्ष के साथ-साथ विपक्ष में भी विचारधारा विद्वान है। बहुत से देशों ने तो मृत्युदंड पर रोक लगा दी है परंतु भारत में अभी भी इस संबंध में मतभेद है ।

भारत का पुतिरोधात्मक एवं सुधारात्मक दोनों प्रकार के दण्ड्नीक सिद्धांतों से ओतप्रोत है।

प्रमुख वाद

  1.  बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य – इस वाद में उच्चतम न्यायालय की सवैधानिक  पीठ ने अभिनिर्णीत किया कि भारत में मृत्युदंड  जनहित में है और अनुचित नहीं है।
  2.  मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य – इस प्रमुख बाद में उच्चतम न्यायालय ने  अभिनिर्णीत  किया कि मृत्युदंड विरले से विरलतम  मामले में दिया जाना चाहिए। दुर्लभ से दुर्लभ मामले में मृत्युदंड को असवैधानिक नहीं माना इसी  वाद को ध्यान में रखते हुए काफी मामलों में इसके पश्चात मृत्युदंड दिया गया ।
  3. निर्भया मामला–  इस बाद में पीड़िता के साथ किया गया व्यवहार इतना क्रूड था कि  उम्र कैद की सजा इसके लिए बहुत ही कम थी । 2012 में हुए इस भीषण घटना ने देश को झकझोर  कर रख दिया था अत: इस अपराध में शामिल अपराधियों को मृत्युदंड देना ही पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए मांग थी।

निर्भया मामले से पहले भारत में फांसी 2015 में आतंकवादी याकूब मेमन को दी गई थी। 2015 से पहले 2001 में संसद पर हमले की साजिश रचने के लिए  मोहम्मद अफजल को 2013 में फांसी की सजा दी गई थी। इससे पहले 2004 में बलात्कार के अपराधी धनजय चटर्जी को फांसी की सजा दी गई थी इस मामले को देखने से पता चलता है कि अपराधों में भारत में मृत्युदंड दिया गया है, अब वर्तमान समय में मृत्युदंड पर पक्ष और विपक्ष में महत्वपूर्ण चर्चा की जा रही है कि मृत्युदंड पर रोक लगाई जाए। निर्भया के दोषियों मृत्युदंड के पश्चात् इस विषय पर चर्चा तेजी से बढ़ रही है।

मृत्युदंड को निरंतर रखने  के पक्ष में तर्क –

मृत्युदंड को निरंतर रखने  के पक्ष में जो भी पक्षकार शामिल है उनका मानना है कि मृत्यु का भय ही सबसे अधिक भयभीत करता है जो समाज को सही राह पर ले जाता है।

  • मृत्युदंड का भय अपराधों पर अंकुश लगाता है।
  •  हत्या सहित डकैती, राष्ट्रद्रोह , आंतकवाद इत्यादि  मामलों में मृत्युदंड ही एकमात्र काम का उपचार है ।
  • भारत में दुर्लभ मामलों से दुर्लभतम मामलों में मृत्युदंड दिया जाता है ।
  • मृत्युदंड  सेशन न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय की पुष्टि के पश्चात ही पारित किया जाता है ताकि मामला उच्च न्यायालय की निगरानी में आ सके।
  • प्रतिशोध के सिद्धांत के अनुसार भी खून के बदले ‘खून के बदले खून  और आंख के बदले आंख’का सूत्र अधिक कामगार साबित होता है।
  • मृत्युदंड प्रतिरोधात्मक सिद्धांत पर आधारित उदाहरण स्वरूप दिया गया दंडदेश है इससे न्यायालयों के मन में पर्याप्त रहता है।
  • यदि कानून अपराधों के पर्याप्त सजा नहीं देगा तो व्यथित पक्ष कार कानून हाथ में लेकर अपराधियों को अपने स्तर पर सजाएं देना आरंभ कर देंगे जिससे समाज में अराजकता फैल जाएगी ।

मृत्युदंड को समाप्त करने के पक्ष में तर्क–

  • निम्न पक्षकारों का मानना है कि जीवन भगवान द्वारा दी गई अमूल्य भेंट है जिससे ऐसी दंड प्रणाली द्वारा छीना नहीं जा सकता।
  • मृत्युदंड वह  सजा है जो उस युग की याद दिलाती है जब कोई न्याय प्रणाली की  व्यवस्था नहीं थी ।
  • वर्तमान समय में मृत्युदंड आलोचना का विषय बन गया है क्योंकि यह दंड अहिंसा के सिद्धांत के विरुद्ध है ।
  • मानव को गलतियों का पुतला माना गया है अगर इसकी गलतियों की सजा मृत्युदंड दिया जाए तो वह गलती सुधारने का मौका गवा देता है।
  •  मृत्युदंड असितत्व होने के बावजूद भी अपराधों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है।
  •  भारत में एक तरफ तो हिंसक जानवरों को भी संरक्षण प्रदान किया जाता है और दूसरी तरफ हत्या के दोषी को मृत्युदंड देकर उसके जीवन को समाप्त करने को विधिक मान्यता प्रदान की गई है।
  •  भारतीय लोगों की जीवन शैली धर्म नीति और आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित है यहां बदलने की जगह समाधान को महत्व दिया जाता है।

भारतीयकानून में मृत्युदंड के प्रावधान

  • मृत्यु दंड की सजा – सेशन न्यायालय को भी दंड प्रक्रिया संहिता में मृत्युदंड देने की शक्ति प्रदान की गई है परंतु सेशन न्यायालय मृत्युदंड का निष्पादन करने से पहले उच्च न्यायालय से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 366 से परामर्श हेतु भेजेगा वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 368 में पुष्टि हो जाने के पश्चात ही मृत्यु दंड का निष्पादन कर सकेगा।
  •  मृत्यु दंड का निष्पादन कब पूर्ण होता है –  दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354(5) बताती है कि जब किसी व्यक्ति को मृत्यु दंड दिया जाता है तो वह दंगादेश यह निर्देश देगा कि उसे गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु ना हो जाए।
  •  गर्भवती स्त्री को मृत्युदंड का मुल्तवी किया जाना – दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 416 बताती है कि अगर स्त्री को मृत्युदंड दिया गया है वह गर्भवती है तो उच्च न्यायालय उसका आजीवन कारावास के रूप में लघुकर सकेगा कर सकेगा।

निष्कर्ष – हम भारत में मृत्युदंड की धाराओं पर नजर डालें तो इसके विपक्ष की धाराएं सही प्रतीत होती है क्योंकि मृत्यु के पश्चात भी अपराधों में कमी नहीं आई है। मृत्यु दंड को रोककर समाधान निकालना होगा जिससे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।

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