by : मीनू देवी
B.A, LLB, LLM [Judiciary Aspirant (ZJ)]
सवतंत्र न्यायपलिका :- भारत का सविधान सघातमक होते हुए भी सकात्मक पारवती वाला सविधान हैं यह पर सविधान को सर्वोच्चाता प्रदान की गयी हैं भारत भारत के सविधान मैं सवतंर न्यायपलिका के भी स्थापित किया गया हैं भारतीय सविधान मैं एक सवतंत्र न्यायपलिका का होना नागरिको के हितो की सदैव रक्षा करता हैंi
परिसंघ प्रणाली मैं जहां एक और सविधान विधि माना जाता हैं , वही दूसरी और वही सर्कार के थीं विभिन अंगो (1) कार्येपालिका (2) विधायिका (3) न्यायपलिका के बिच शक्तियो का विभाजन भी करता हैं ; अंत: परिसंघात्मक सविधान की यह भी अनिवार्ये आवयश्क्ता हैं की वह एक सवतन्त्रे न्यायपलिका की स्थापना भी करे क्योकि एक सवतन्त्रे न्यापालिका ही –
- सविधान की वयासंख्या कर सकती हैं उसके उलंघन के रोक सकती हैं और उसको सर्वोचता के स्थापित कर सकती हैं !
- सरकार के तीन अंगो के छेत्राधिकार और उनकी शक्तियो के निर्धारित करती हैं,
- केंद्र और राज्ये के बीच उत्त्पन सवेधानिक विवाद को सुलझा सकती हैं ,
सविधान दवारा नागरिको को प्रदान मूल अधिकारों को राज्य के विरुद्ध लागू करवा सकती हैं और राज्य दवारा निर्मित विधियों की वैधता की जाँच कर सकती हैं
अनुछेद ३२ के अंतर्गत रिट याचिका द्वारा मौलिक अधिकारों के उलंघन को रोका जा सकता हैं !
सर्कार के अंग के रूप विधायिका का कार्ये केवल विधि बनाना हैं और उन विधि का पालन करवाना सरकार दूसरे अंग कार्येपालिका का काम होता हैं और न्यायपलिका का कार्ये यह देखना होता हैं की विधायिका ने सविधान के अंतर्गत कार्य किया हैं या नहीं और कार्येपालिका विधायिका दवारा बनाये विधान के अनुसार कार्ये किया हैं या नहीं
भारतीय सविधान मैं सवतंत्र न्यायपलिका
(१) सविधान की व्याख्या करना :- सवतंत्र न्यायपलिका का प्रमुख महत्व सविधान की वयाख्या करना हैं , सविधान के किसी भी उपभंध का
भारतीय सविधान मैं सवतंत्र न्यायपलिका
(1) सविधान की व्याख्या करना :- सवतंत्र न्यायपलिका का प्रमुख महत्व सविधान की वयाख्या करना हैं , सविधान के किसी भी उपबंध का स्पष्टीकरण करना न्यायपलिका के हाथ मैं हैं, अंत एक सवतंत्र न्यायपलिका सविधान के प्रावधानों को स्पष्ट करने और वयाख्या करने का महत्वपूर्ण कार्ये करती हैं ,
(2) सविधान के उलंघनो को रोकना :- सवतंत्र न्यायपलिका सविधान के किसी भी उपबंध का उलंघन किये जाने के लिए सरकार को प्रतिबंधित करती हैं सरकार को भी सविधान के विरुद्ध कानून बनाने की इजाजत नहीं हैं ,
(3) न्यायिक पुनरीक्षण की शाक्ति :- भारत को सर्व्वोच्च न्यायालय को न्यायीक पुनरीक्षण की शक्ति प्राप्त हैं , इसके तहत व केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर विधियों और कार्येपालिका आदेशो की सविधानिकता की जाँच की जा सकती हैं , सर्वोच्च न्यायालीय दवारा अधिकारातीत पाए जाने पर इन्हे असवैधानिक और अवैध तथा उस सत्र तक सुनए घोसित किया जा सकता हैं जिस सत्र तक वह सविधान का,उलंघन करता हो ,
सविधान के विभिन अनुछेद 13, 32 , 131 , 136 , 141 , 143 , 226 , 227 , 245, 246 , तथा 372 के उपबंध प्रतयक्ष या अप्रतयक्ष रूप से न्यायिक पुनरीक्षण की शक्ति प्रदान करते हैं !
(i) भारतीय सविधान में अनुछेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के मूल छेत्राधिकार हैं ,
(ii) अनुछेद 132 – 136 के तहत अपीलीय छेत्राधिकार हैं
(iii) अनुछेद 143 के तहत परामर्श सम्बन्धी छेद्राधिकार का विवरण हैं
(iv) अनुछेद 32 में उच्तम न्यायालय को मौलिक अधिकारों का सजग प्रहरी बताया गया हैं , उच्तम न्यायालय अनुछेद 32 के तहत तथा उच्च न्यायालय अनुछेद 226 के तहत मौलिक अधिकारों को बहाली के लिए बंदी प्रतयक्षकिरण , परमादेश , प्रतिशेध, उत्प्रेक्षण और अधिकार प्रच्छा सम्बन्धी रिट निकाल सकते हैं ,रोकना
(iv) सामान न्याय प्रदान करना :- सवतंत्र न्यायपलिका किसी देश के nagriko को सामान नियाये प्रदान करती हैं न्यायालय के सामने न कोई छोटा हैं न कोई बड़ा हैं और ने ही आमिर हैं और ने ही गरीब हैं , भारत में सभी को सामान नियाये देने का न्यायपलिका को महत्वपुर्ण अधिकार प्राप्त हैं ,
निम्नलिखित बाद जो की न्यायपलिका ( उच्तम न्यायालय ) द्वारा निर्मित हैं ,
(i) सबरीमाला मंदिर वाद :- महिलाओ के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध को असवैधानिक घोसित क्र पुराणी परम्परा को अवैध घोसित किया और मन की ऐसी परम्पराये महिला एवं पुरुष के मध्ये असमानता का भेदभाव करती हैं और न्यायपलिका के समक्ष पुरुष व महिला सामान हैं ,
(ii) नवतेज सिंह जोहर वाद :- भारतीय दंड सहिता की धारा 377 को असवैधानिक घोषित किया इसमें कहा गया की धारा 377 अनुछेद 21 व् अनुछेद 14 के विरुद्ध हैं
(iii) जोसेफ साइन वाद ;- उच्चतम न्यायालय ने धारा 497 भारतीय दंड सहिंता को असवैधानिक घोषित किया और व्यभिचार को दाण्डिक अपराध की श्रेणी से बाहर किया !
वर्तमान शिक्षा – वयवस्था की दशा और दिशा
देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागु हुआ तो 6 से 14 वर्ष के बच्चो के लिए यह मौलिक अधिकार बन गया , वर्तमान समय में केंद्र सरकार व् राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के छेत्र में बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार में परवर्तित करने का मुख्य मकसद सरकार का यही रहा की अनपढ़ता को ख़त्म कर समाज व देश के प्रत्येक नागरिक को शिक्षित करना क्योकि अशिक्षित समुदाय के लिए प्रगति कर पाना संभव नहीं हैं आज भी ऐसे पिछड़े वर्ग हैं हमारे देश में जो अशिक्षित हैं जिनका विकास नहीं हुआ हैं , शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने कई योजनाए की शुरुआत की एवं शिक्षा को भढावा देने से सम्बंधित कई कार्येक्रम चलाए जा रहे हैं, इसके बावजूद शिक्षा के छेत्र में चुनोतियो का अम्बार लगा हैं था ऐसे उपायों की तलाश लगातार जारी रहती हैं , जिनसे इस चेत्रे में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाये जा सके ! समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए शिक्षित वर्ग का होना अतिआवशयक हैं , मानव संसाधन के विकास का मूल शिक्षा हैं जो देश के समाजिक – आर्थिक तंत्र के संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ,
भारतीय सविधान मैं समवर्ती सूचि का विषय हैं शिक्षा शिक्षा के छेत्र मैं आधारभूत वित्तीय एवं रासायनिक उपायों के द्वारा राज्यों एवं केंद्र सरकार के बिच नई जिम्मेदारी को बाटने की आवशयकता महसूस की गईi जहाँ एक और शिक्षा के चेत्रे मैं राज्ये की भूमिका एवं उनके अतरदायिक मैं कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ , वहीं केंद्र सरकार ने शिक्षा के राष्ट्रीय एवं एकिकीर्त सवरूप को सुदुढ करने का भार भी स्वीकार किया हैं
1976 मैं पूर्ण शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उतरदायिता था , लेकिन 1976 मैं किये गए 42 वे सविधान ससोधन द्वारा जिन पांच विषयो को राज्ये सूचि से हटाकर समवर्ती सूचि मैं शामिल किया गया उनमें शिक्षा भी शामिल हैं , अब वर्तमान समय मैं राज्ये वे केंद्रे सरकार शिक्षा के विषय पर मिलकर काम करते हैं !
शा – संस्थागत समस्या हैं एक बड़ा कारण :- भारत के राज्यो मैं सर्वाधिक सरकारी कर्मचारियों को संख्या शिक्षा विभाग मैं ही देखने को मिलती हैं इनमे से शिक्षा के मोर्चे पर सामने तैनात रहने वाले अधयापको के अलावा हजारो अधिकारी और प्रसाशक भी हैं जो हमारे शेषिक शटअप का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं , इसके बावजूद भारत आज़ादी के ७२ वर्षो बाद भी शिक्षा के छेत्र मैं ठोस पर्यासो के बावजूद वचित परिणाम हासिल नहीं कर पाया हैं और भारत का शिक्षा जगत अनेकानेक संस्थागत योजनाओ से प्रभावित हैं !
प्रमुख समस्याएं :- (i) हमारे देश का शिक्षा छेत्र शिक्षकों की कमी से अधिक प्रभावित हैं, UGC के अनुसार , कुल सावकीर्त शिक्षण पदों मैं 35% प्रोफ़ेसर के पद रिक्त हैं
(ii) सरकार भी शिक्षा के छेत्र मैं सुधर के लिए निरन्तर प्रयाश करती रहती हैं , लेकिन इसमें भी राज्यों द्वारा चलाये जाने वाले शिक्षा सुधर कार्येकर्मों के असफल हो जाने का जोखिम रहता हैं , क्योकि वे परिवर्तन करते समय रोडमैप का अनुसरण नहीं करते नीतिया बनाते समय सभी हितधारकों के भी ध्यान मैं भी नहीं रखा जाता !
(iii) भारत मैं उच्च शिक्षा मैं गुणवत्ता बहुत बड़ी चुनौती हैं , टॉप २०० विश्व रैंकिंग मैं बहुत कम भारतीय शिक्षण संश्थानो के जगह मिल जाती हैं !
वर्तमान समय मैं शिक्षा मैं प्रगति :-वर्तमान समय मैं पहले की अपेक्षा काफी सुधार देखने के मिला हैं जनता शिक्षा के लेकर जागतत हो रही हैं अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का प्रयास कर रहीं हर एक व्यक्ति अपने बच्चों की अच्छी परिवरिश एवं बेहतर भविष्ये बनाने के लिए उन्हें अच्छी वे बेहतर शिक्षा प्रदान करने का प्रयाश कर रहा हैं
शिक्षा की दिशा मैं सरकार के कदम :- शिक्षा मैं प्रगति हासिल करने के लिए भारत सरकार ने शिक्षा बजट मैं पहले वर्षे से ज्यादा खर्च 2019 -2020 मैं शिक्षा के लिए बांया हैं शिक्षण संस्थानों मैं ऐसी सुविधाये जो विधार्थियो के लिए आवश्यक हैं प्रदान करने की कोसिस की गयी एवं आगे भी की जाती रहेगी , सरकार द्वारा विधार्थियो को निशुल्क शिक्षा भी प्रदान की जा सकती हैं आज के विधर्ती देश का भविस्य हैं इन्ही विधार्थियो मैं से भविस्य मैं कोई इंजिनीयर , डॉक्टर , पायलट , नेता ,शिक्षक , प्रोफ़ेसर , बनेगा इनका वर्तमान सुरक्षित करना सरकार अपना कर्तव्ये समझती हैं ,
(i) स्कूलों की संख्या मैं बढ़ोतरी :- सरकार दवारा नए विधालयो को खोलने का प्रयास किया जा रहा हैं
(ii) छोटे बच्चों के लिए आंगनवाड़ी केंद्र खोलना :- तीन वर्ष तक के बच्चों के लिए आंगनवाड़ी केन्द्रो की स्थापना की गयी !
(iii) स्कूलों , कॉलिजों मैं शिक्षकों की कमी के पूरा करना :- केंद्र व राज्य सरकार का यह प्रयाश निरन्तर कार्य करता हैं की स्कूल व कॉलिज मैं रिक्त स्थानों की भर्ती करना !
(iv) निशुल्क शिक्षा प्रदान करना :- शिक्षा मैं प्रगति के लिए गरीब रेखा के निचे आने वाले सभी बच्चों के निशुल्क शिक्षा प्रदान किया जाना राज्य सरकार का कर्तव्ये हैं ,
(v) शिक्षण संस्थानों मैं आरक्षण प्रदान करना :- सविधान का अनुछेद 15 (4) के द्वारा सामाजिक तथा शिक्षित द्रिष्टि से पिछड़े हुए वर्गों के या अनुसूचित जाति था अनुसूचित जनजाति के लोगो के लोगो के लिए शैक्षणिक संश्थानो मैं प्रवेश हेतु आरक्षण की वयवस्था की गयी हैं , यह प्रवधान बनाया गया हैं की शिक्षण संस्थानों मैं किसी भी प्रकार भेदभाव को वर्जित करता हैं ,
(vi) स्कूलों मे मिड डे मील का प्रबंध करना :- शिक्षा के छेत्र मैं लेन के हर संभव प्रयास सरकार द्वारा किये जा रहे हैं स्कूलों मैं बच्चों के लिए संतुलित आहार की वयवस्था भी सरकार द्वारा की गयी हैं ,
(vii) प्राथमिक सहायता प्रदान करना :- स्कूलों मैं सुधार कार्य प्रगति पर रहा हैं बच्चों के स्कूलों मैं प्राथमिक सहायता उब्लब्ध कराना स्कूली बच्चों के स्वास्थय की देखभाल करना सरकार अपना कर्तव्ये समझती हैं !